आज बीते कुछ बर्षों मे राजनीति एक खेल सा बन गया है जहा हम सुनते है की एक नेता ने दूसरे के पाले मे गेंद डाल दी।मतलब एक दूसरे पर तोहमत लगाना, एक दूसरे को फंसाना।और सत्ता पाने की ऐसी लालच की मत पूछिये।पक्ष हो या विपक्ष बस एक दूसरे की कामिया गिनने मे लगे है और यहा तक की इन्होने मान लिया है की दूसरे अगर गलत है तो इन्हे भी गलती करने की आज़ादी या खुली छूट मिल जाती है।अगर कोई माननिए घोटाले मे धरे जाते है तो उनका टका सा जवाब होता है की विपक्ष अपनी गिरेबान मे झाँके।उनके राज मे भी तो ऐसा होता था।पर साहब आपको जिस जनता ने वोट दिया उसे भूल गए।फूटबाल के खेल मे भी कुछ ऐसा ही होता नजर आता है।क्षण मे बॉल इस खिलाड़ी से उस खिलाड़ी के पास।खिलाड़ी तो ये भी है राजनीति के धुरंधर।और खेल मे हारती है सिर्फ जनता।मूक दर्शक बन कर।हो हल्ला तो होता है पर यहा दर्शक के बजाए खिलाड़ी हल्ला करते है।क्या यह समस्या अंतहीन है?
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