Sunday 19 August, 2012

लोकतन्त्र का घूंटता गला

कुछ समय से देश की राजनीति में जो उथल पुथल देखने को मिल रहा है इसे लोकतन्त्र के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता है।लोकतन्त्र जहां जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को कुछ अधिकार दिये गए है जिस से की शासन व्यवस्था सुचारु रूप से चले पर सत्ता का ऐसा नशा चढ़ा है सत्ताधिसों पर की वह अपने को स्वयंभू मान जनता को लूट रहे है।घोटालो की संख्या में लगातार वृद्धि और भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने के बजाए उन्हे पोषित किया जा रहा है।समस्याओं से घिरे हमारे देश के निकट भविष्य में इन उलझनों से उबर पाना मुश्किल लग रहा है।लोकतन्त्र में अगर जनता के अधिकारो की अनसुनी हो तो समझना मुश्किल नहीं की लोकतन्त्र कितना स्वस्थ है।कई स्पष्ट कारण नजर आते है लोकतंत्र के मरणासन्न होने के-
समस्या की गंभीरता को समझने में नाकाम सरकार
बीते कुछ समय मे सरकार समस्याओं की गंभीरता को समझने मे नाकाम रही और पिछले कुछ समय में इस वजह से अपनी किरकिरी करा चुकी हमारी सरकार सुधरने का नाम नहीं ले रही।सबसे विडम्बना वाली बात यह की अगर समस्या से जो कोई अवगत कराये उसे सरकार अपना दुश्मन मन बैठती है।घोटालो पर अंकुश लगाने मे विफल सरकार ने अब और भी घोटाले किये।हल में आए सीएजी की रिपोर्ट मे नए घोटालो मे कोयला आवंटन मे बंदर बाँट, विमानन मंत्रालय मे हुआ महाघपला, ऊर्जा क्षेत्र मे घोटाला के सामने आने से जनता में भारी अविश्वास फैल चुका है।कुछ गंभीर समस्यायों में असम दंगा और उसके बाद अफवाहों का फैलना, देश मे  बिजली का एकसाथ ठप्प पड़ना, असम दंगो के बाद देश के दूसरे क्षेत्रों मे दंगे जैसे हालात का बनना सबकुछ सरकार की असंवेदनसीलता को दर्शाता है।महंगाई को कम करने मे नाकाम सरकार देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाली सरकार और घोटाले पर घोटाले करने वाली सरकार से अब यह उम्मीद करें की सबकुछ ठीक हो जाये जरा मुश्किल है।उम्मीद है जल्द समझ में आ जाये की जनता के द्वारा चुने हुये सरकार मे जनता के प्रति संवेदनायें कितनी जरूरी है।
गैरजिम्मेदार विपक्ष
जहां समस्याए इतनी विकट है की लोकतन्त्र और आज़ादी का गला घूंटता नजर आ रहा वही हमारे देश का विपक्ष सरकार की असफलताओं को जनता के बीच उठाने मे नाकाम रहा है।किसी भी देश के संतुलित विकाश के लिए एक सशक्त विपक्ष का होना आवश्यक होता है और दुखद पहलू यह है की हमारे देश के प्रमुख विपक्षी पार्टी ने सत्ता पाने की चाहत मे अंदरूनी कलह से उलझ कर देश का अहित ही किया है।अगर विपक्ष ताकत से अपनी बात जनता तक पहुंचा पाती तो अन्ना और रामदेव जैसे गैर राजनीतिक लोगो को आंदोलन के राह पर चलने की जरूरत न आन परती।अब जरूरत है आंतरिक कलहों को भूल विपक्ष को देश के साकारात्मक विकाश पर ध्यान देने की और सत्ता पक्ष पर दवाब दल कर जनता के मुद्दे को ज़ोर शोर से उठाने की।
समाज का गिरता नैतिक स्तर
ये मान कर चले की हमारे समाज के नशों में भ्रष्टाचार समा चुका है और हमारे अंदर ईमानदारी का आभाव है।रोज रोज हो रहे आपराधिक घटनाओं से लगता है की हमे एक बहुत बड़े सुधार की आवश्यकता है क्योकि अराजकता सबके मानसिक पटल पर जा बैठा है।आज जरूरत है छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक के हर तरह के अराजकता को खतम करने की और देश के हर नागरिक को विकाशोन्मुखी होने की। मतदान के अधिकार का जाम कर प्रयोग किया जाना चाहिए और चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से ईमानदार लोगो को अपना जनप्रतिनिधि बनाने की। 
                                       लोकतन्त्र हमारे लिये वरदान है जिसे हमारे पूर्वजो ने बड़ी जद्दोजहद के बाद हासिल किया है तो इसे बेकार न जाने देना चाहिए और देश को एकजुट हो कर कम करना होगा।राजनीतिक पार्टियो को एक साकरत्मक भूमिका में आना होगा और लोकतन्त्र की मर्यादा को ध्यान मर्यादा को ध्यान मे रखते हुये भ्रष्टाचार जैसी बुराइयों से देश को मुक्त कराना होगा।प्रकृतिक संसाधनो की लूट और जनता के बीच बढ़ रही अमीरी-गरीबी की लंबी खाई कही हमें बहा ना ले जाए।क्यो ना हम छोटे छोटे मुद्दो को तुरत संग्यान में ले।क्यो हम प्रतीक्षा करते है की कोई बड़ा जनान्दोलन हो और सरकार जागे।सरकार को अलग राज्यो के मांग वाले सभी  मुद्दो पर बहुत ही गहनता से निर्णय लेना चाहिए।आज परिस्थिति यह है की अगर बड़ा हिंसक आंदोलन ना हो तबतक सुनवाई नहीं होती।लोकतन्त्र को पूरी तरह मरने के पहले ही इसे बचाने की कोई ना कोई पहल होनी आवश्यक है।

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