Friday 13 September, 2013

दिल्ली गैंगरेप के फैसले पर द्वंद

- मनीष चन्द्र मिश्र
दिल्ली का शर्म कही जाने वाली और दामिनी के रूप में देश और इंसानियत की अस्मिता को तार-तार करने वाली वारदात के बाद देश में जो गुस्सा फूटा, आज उसके अंजाम का दिन है. मामले की सुनवाई कर रही फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए चारों आरोपियों को फांसी की सजा सुना दी. इस सजा ने कई बहस को जन्म दिया है. इंसाफ मिलने से जहां देश के लोग खुश हैं वहीं कुछ लोग ऐसे मामलों पर काफी समय से फांसी की सजा का विरोध करते आएं हैं. चाहे वह अफजल-कसाब जैसे दुर्दांत आतंकी को फांसी देने का मामला हो या दामिनी के गुनहगारों की जान लेने के फैसले का मामला हो. तो अब इन बहसों से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या फांसी की सजा को बंद कर दिया जाए ? सवाल यह भी कि क्या उम्रकैद की सजा या कुछ इससे भी कड़ी सजा ऐसे अपराधियों को ज्यादा सबक देती है ?

मनुष्य को पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों में सबसे समझदार माना जाता है. और यह सिर्फ मान्यता ही नहीं सभी मामलों में मनुष्य अन्य जीवों से आगे है. मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि समाजिक जीवन जीने और अपने बनाए कानून का पालन करने और किसी निर्धारित तंत्र द्वारा उसका पालन करवाने की भी है.
मनुष्य के विकास के साथ-साथ कानूनों में भी परिवर्तन हुए. पहले कबीले में लोग अपने कानून पर चलते थे. अब समाजिकता बढ़ी तो कानून में हेरफेर के साथ आज 21वीं सदी का कानून हमारे सामने है. अभी कई जगहों पर कानून काफी सख्त हैं. मसलन अरब देशों में इस्लाम के सुझाए कानून चलते हैं जो कुछ हद तक कबीलों की तरह क्रूर हैं लेकिन भारत में ऐसी स्थिति नहीं है. हमारे देश के कानून व्यवस्था में अपराध को देखते हुए सजा देने का विधान है. अपराध की जघन्यता सजा को तय करने में सहायक होती है. तो ऐसे मैं भारत के कानून में सिर्फ जघन्यतम अपरादों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है.



कुछ लोगों की ये दलील भी जायज है कि जान लेने का हक सिर्फ कुदरत को है. वैश्विक स्तर पर मानवाधिकतारियों ने अपने प्रयासों से एक दवाब भी बनाया है कि इस सजा को खत्म किया जाए. लेकिन उन्हें सोचना होगा कि अपराधियों के लिए मानव अधिकारों की बात कर हम उनके अपराध में बढ़ावा तो नहीं दे रहे. कुदरत के नियम की दलील के आधार पर कुछ मामलों में फांसी रोकी जा सकती है लेकिन इस सजा को साफ बंद कर देने से यकीनन अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे. इस मामले में भारत के कानून की सराहना करनी होगी. और इस स्थिति में गैंगरेप के बाद क्रूरतापूर्वक हत्या जैसे जघन्य अपराधों में फांसी की सजा जायज है. ऐसे मामलों के अपराधियों पर दया करना पीड़ित के साथ अन्याय होगा और यह मानव जाति के उस कानून के खिलाफ भी होगा जहां लोगों ने मिलकर खुद को कानून के भीतर रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

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