Monday 15 June, 2015

फुर्सत के पल, हादसे का दर्द और ज़िद ने मुझे भोपाली बना दिया

वरिष्ठ रंगकर्मी बंसी कौल ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में भोपाल से जुड़ी यादों को शेयर किया। वह 1970 में कश्मीर से मध्यप्रदेश आए थे। कुछ दिनों बाद उन्हें भोपाल रास आ गया और यहीं रहने लगे।

बंसी कौल को थिएटर ऑफ लाफ को स्थापित करने के लिए जाना जाता है।
मनीष चंद्र मिश्र।  
'पहली बार 1970 में सागर यूनिवर्सिटी की एक वर्कशॉप में मेरा कश्मीर से मध्यप्रदेश आना हुआ। भोपाल की खूबसूरती मुझे हमेशा से अट्रैक्ट करती रही है। शुरुआत में आना-जाना लगा रहा, फिर शहर के लोगों से दोस्ती होने लगी। भोपाल के मिजाज में फुर्सतपन है। यह फुर्सत कोई सुस्ती नहीं, बल्कि यह क्रिएटिव काम के लिए जरूरी भी है। मैं भी कुछ इसी तरह की सोच का इंसान हूं। काम की भागदौड़ के बीच घर में आराम के साथ रहने की बात ही अलग है। यहां की जुबान में गजब का ह्यूमर है। इसमें मजाक और कटाक्ष के बीच मानवीयता भी है। इस जुबान को गुलाबी उर्दू कहेंगे। इसमें मालवी, बुंदेलखंडी, उर्दू जैसी भाषाओं के मेल से खास तरह का लहजा बनता है। मेरी कश्मीरी जुबान भी इसमें समा गई और किसी ने भाषा के लिए कभी नहीं टोका। इन सभी वजहों से भोपाल मुझे जम गया और मैं यहीं का हो गया।'

उस रात ट्रेन जल्दी आ गई...

'गैस त्रासदी की रात दिल्ली के लिए निकलना था। एक दोस्त अलखनंदन ने स्टेशन तक छोड़ दिया। आमतौर पर देर से आने वाली ट्रेन, उस रात जल्दी आ गई। इसके बाद जो ट्रेनें आईं, उसके यात्री गैस हादसे का शिकार हो गए। सुबह दिल्ली पहुंचकर पता चला कि भोपाल में बड़ा हादसा हो गया है। मैं तुरंत भोपाल लौट आया। उस वक्त यहां का माहौल भयानक था। शहर के दर्द को देखकर मैं इसके और करीब होता गया। पीड़ितों की जो मदद बन सकी, करता गया। इस दौरान सभी कलाकार भी एक साथ हो गए थे। भारत भवन की रैपेट्री की वजह से शहर के कई थिएटर ग्रुप्स खत्म होने लगे थे। उस वक्त रैपेट्री के बाहर के थिएटर को बचाने और उन्हें सफल बनाने की जिद ठान ली थी। "रंग विदूषक' के जरिए इसे बचाने की कोशिश के चलते भोपाल में रहने लगा।'

चाय पीते-पीते बन गया 

"रंग विदूषक'मैं प्रोफेसर कॉलोनी में रहता था, जो पुराने और नए भोपाल के बीच में है। जब नया भोपाल सो जाता है तो पुराने भोपाल में रौनक शुरू होती है। हम देर रात तक पटियों पर बैठते थे। हमीदिया कॉलेज (अब एमएलबी) के सामने चाय पीते-पीते हमने "रंग विदूषक' बनाने की प्लानिंग की। थिएटर में सभी तरह के लोग काम करते हैं। इसके माध्यम से कई भोपाली दोस्त बने।


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